ब्रेकिंग न्यूज़

Raksha Bandhan: क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्यौहार? जानिए इससे जुड़ी कहानी

Raksha Bandhan: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने का पावन पर्व सदियों पुराना है. रक्षाबंधन का त्योहार सिर्फ लोक परंपरा का हिस्सा भर नहीं है, बल्कि इसके साथ कई पौराणिक कथाएं, आध्यात्मिक अनुभूतियां और वैज्ञानिक तथ्य भी जुड़े हुए हैं. अक्सर लोगों में ये जिज्ञासा देखने को मिलती है कि आखिर एक मामूली रक्षा सूत्र में ऐसी कौन सी दिव्य शक्ति समाहित है कि वो युगों-युगों से भारतीय संस्कृति का हिस्सा बना हुआ है. इसे एक पौराणिक कथा के माध्यम से समझा जा सकता है.

कलियुग में तो हम रक्षा बंधन के त्योहार को प्रत्यक्ष तौर पर देख ही रहे हैं. लेकिन इस त्योहार से जुड़ी अत्यंत गूढ़ और मार्मिक पौराणिक कथा सतयुग में भी देखने को मिल जाती है. ऐसी मान्यता है कि सत्युग में दैत्यों के राजा बली ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया थी. राजा बली बेहद दानवीर था. लिहाजा उसकी परीक्षा लेने के लिए यज्ञ की समाप्ति पर स्वयं नारायण एक बौने ब्राह्मण का वेश धरकर बली के पास पहुंच गए और बली से तीन पग की जमीन दान देने की प्रार्थना की.

नारायण ने राजा बलि से मांगी तीन पग जमीन (Raksha Bandhan)

अपनी दानवीरता को लेकर अहंकार में रहने वाले राजा बली इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए. तब नारायण ने एक पग में समूचा आकाश और दूसरे पग में समूची धरती नाप दी. राजा बली को एहसास हो गया कि वामन के रूप में स्वयं नारायण उनकी परीक्षा लेने आए हैं. इसलिए उन्होंने तीसरे कदम के लिए अपना सिर समर्पित कर दिया. भगवान विष्णु राजा बली की इस दानवीरता से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का साम्राज्य दे दिया और साथ ही वरदान मांगने को कहा.

तब राजा बली ने भगवान विष्णु से कहा कि पाताल लोक में आप स्वयं द्वारपाल बनकर हमारे साथ रहें. भक्त वत्सल भगवान अपने वचन से कहां डिगने वाले थे. लिहाजा वो बली के साथ पाताल में द्वारपाल बनकर रहने लगे. उधर भगवान विष्णु जब बहुत दिनों तक बैकुंठ नहीं लौटे तो मां लक्ष्मी उनकी खोज खबर लेते-लेते पाताल पहुंच गईं. जहां भगवान द्वारपाल बनकर रह रहे थे.

मां लक्ष्मी ने राजा बलि को बांधा रक्षा सूत्र (Raksha Bandhan)

सारी कथा समझने के बाद मां लक्ष्मी एक गरीब ब्राह्मणी का रूप धरकर राजा बली के पास गईं और उनके हाथ में एक रक्षा सूत्र बांध दिया. प्रसन्न होकर राजा बली ने ब्राह्मणी बनी मां लक्ष्मी से बदले में कुछ उपहार मांगने को कहा तो मां लक्ष्मी ने उनसे भगवान नारायण को बैकुंठ वापस भेजने का आग्रह किया. दानवीर बली बचनबद्ध थे, इसलिए मां लक्ष्मी की ये शर्त मानकर उन्होंने भगवान विष्णु को वरदान के बंधन से मुक्त कर दिया.

अब आप सोचिए कि इस रक्षा सूत्र का कितना महत्व है कि उसके बदले में तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु को भी वापस देने में राजा बली ने एक पल की भी देरी नहीं की. संयोग से ये दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का था. कहते हैं कि उसी दिन से सावन पूर्णिणा पर रक्षाबंधन मनाने की परंपरा चली आ रही है.

इसीलिए रक्षाबंधन के दिन रक्षा सूत्र बांधते हुए एक मंत्र पढ़ने की परंपरा रही है. ये मंत्र है- ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥’ यानी जिस तरह दानवीर और महा पराक्रमी राजा बली की कलाई पर मां लक्ष्मी ने रक्षा सूत्र बांधा था, उसी तरह मैं भी आपकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांध रही हूं जो आपकी अचल भाव से रक्षा करे.

Also Read:Muzaffarpur News: मुजफ्फरपुर में नव विवाहिता की हुई हत्या और शव को जलाया, सामने आई चौकाने वाली वजह

Rate this post

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button